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मा नो॑ म॒हान्त॑मु॒त मा नो॑ऽअर्भ॒कं मा न॒ऽउक्ष॑न्तमु॒त मा न॑ऽउक्षि॒तम्। मा नो॑ वधीः पि॒तरं॒ मोत मा॒तरं॒ मा नः॑ प्रि॒यास्त॒न्वो᳖ रुद्र रीरिषः ॥१५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मा। नः॒। म॒हान्त॑म्। उ॒त। मा। नः॒। अ॒र्भ॒कम्। मा। नः॒। उक्ष॑न्तम्। उ॒त। मा। नः॒। उ॒क्षि॒तम्। मा। नः॒। व॒धीः॒। पि॒तर॑म्। मा। उ॒त। मा॒तर॑म्। मा। नः॒। प्रि॒याः। त॒न्वः᳖। रु॒द्र॒। री॒रि॒ष॒ इति॑ रीरिषः ॥१५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:15


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजपुरुषों को क्या नहीं करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (रुद्र) युद्ध की सेना के अधिकारी विद्वन् पुरुष ! आप (नः) हमारे (महान्तम्) उत्तम गुणों से युक्त पूज्य को (मा) मत (उत) और (अर्भकम्) छोटे क्षुद्र पुरुष को (मा) मत (नः) हमारे (उक्षन्तम्) गर्भाधान करने हारे को (मा) मत (उत) और (नः) हमारे (उक्षितम्) गर्भ को (मा) मत (नः) हमारे (पितरम्) पालन करने हारे पिता को (मा) मत (उत) और (नः) हमारी (मातरम्) मान्य करने हारी माता को भी (मा) मत (वधीः) मारिये और (नः) हमारे (प्रियाः) स्त्री आदि के पियारे (तन्वः) शरीरों को (मा) मत (रीरिषः) मारिये ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - योद्धा लोगों को चाहिये कि युद्ध के समय वृद्धों, बालकों, युद्ध से हटनेवाले ज्वानों, गर्भों, योद्धाओं के माता पितरों, सब स्त्रियों, युद्ध के देखने वा प्रबन्ध करनेवालों और दूतों को न मारें, किन्तु शत्रुओं के सम्बन्धी मनुष्यों को सदा वश में रक्खें ॥१५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजजनैः किं न कार्यमित्याह ॥

अन्वय:

(मा) निषेधार्थे (नः) अस्माकम् (महान्तम्) महागुणविशिष्टं पूज्यं जनम् (उत) अपि (मा) (नः) (अर्भकम्) अल्पं क्षुद्रम् (मा) (नः) (उक्षन्तम्) वीर्य्यसेक्तारम् (उत) (मा) (नः) (उक्षितम्) सिक्तम् (मा) (नः) (वधीः) हिंस्याः (पितरम्) पालकं जनकम् (मा) (उत) (मातरम्) मान्यप्रदां जननीम् (मा) (नः) (प्रियाः) स्त्र्यादेः प्रीत्युत्पादकानि (तन्वः) शरीराणि (रुद्र) युद्धसेनाधिकृतविद्वन् (रीरिषः) हिंस्याः। अत्र लिङर्थे लुङडभावश्च ॥१५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे रुद्र ! त्वं नो महान्तं मा वधीरुत नोऽर्भकं मा वधीर्न उक्षन्तं मा वधीरुत न उक्षितं मा वधीः। नः पितरं मा वधीरुत नो मातरं च मा वधीः। नः प्रियास्तन्वो मा रीरिषः ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - योद्धृभिर्युद्धसमये कदाचिद् वृद्धा बालका अयोद्धारो युवानो गर्भा योद्धॄणां मातरः पितरश्च सर्वेषां स्त्रियः संप्रेक्षितारो दूताश्च नो हिंसनीयाः, किन्तु सदा शत्रुसम्बन्धिनो वशे स्थापनीयाः ॥१५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - योद्ध्यांनी युद्धाच्या वेळी सर्व वृद्ध, बालके, युद्धातून माघार घेणारे सैनिक, जवान, गर्भवती, योद्ध्यांचे माता-पिता, सर्वांच्या स्त्रिया, युद्ध पाहणारे व त्याची व्यवस्था करणारे यांना व दूतांनाही मारू नये. शत्रूंकडील माणसांना मात्र सदैव आपल्या ताब्यात ठेवावे.